तीन गलतियाँ जो सब करते हैं
आचार्य प्रशांत: सत्य को मायापति कहा गया है; समझते हैं। माया क्या? वो जो हमें प्रतीत होता है, जिसकी हस्ती के बारे में हमें पूरा विश्वास हो जाता है, पर कुछ ही देर बाद या किसी और जगह पर, किसी और स्थिति में हम पाते हैं कि वो जो बड़ा सच्चा मालूम पड़ता था, या तो रहा नहीं या बदल गया; ऐसे को माया कहते हैं।
ग़लत केंद्र से अनुपयुक्त उपकरणों के द्वारा छद्म विषयों को देखना और उनमें आस्था बैठा लेना ही माया है।
तीनतरफ़ा ग़लती होती है। जो देख रहा है, द्रष्टा या कर्ता, वो ग़लत है। वो ग़लत क्यों है? क्योंकि देखते समय, देखने के बिंदु पर उसका इरादा सत्य देखना नहीं है; उसका इरादा है…