तनाव और मनोरोगों का मूल कारण

आपको घर में कभी-कभार साँप दिखाई देता है तो बाकी समय क्या वो होता नहीं? होता है, बस आपको दिखाई नहीं दे रहा, छुपा हुआ है, अपने बिल में घुसा हुआ है। कई बार कार्य बिल्कुल दृश्य रूप में प्रस्तुत होता है, आप उसे देख सकते हैं और कई बार जो कार्य होता है वो पीछे जाकर कारण में समाहित हो जाता है तो दिखाई नहीं पड़ता।

जो तनावग्रस्त है, उसकी ज़िंदगी में तनाव और चिंता और मनोविकार लगातार है, बस वो कुछ मौकों पर उघड़ जाता है, प्रदशित हो जाता है। आपका तनाव बना और बचा ही इसलिए रहता है क्योंकि वो अठारह-बीस घंटे छुपा रहता है, अगर वो चौबीस घंटे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे तो आप उससे आज़ाद हो जाएँगे, क्योंकि जी नहीं पाएँगे आज़ाद हुए बिना।

हम गलत जीवन जी ही इसलिए पाते है क्योंकि गलत जीवन का दुष्परिणाम लगातार नहीं अपना अनुभव कराता, अगर कोई ऐसी व्यवस्था हो पाती कि जो गलत जीवन जी रहे हैं उनको उसी समय तत्काल अपनी गलती का फल मिल जाता, तो गलतियाँ होनी ही बंद हो जाती है।

ये दुनिया का खेल चल ही इसलिए रहा है क्योंकि गलती कर के भी हम सुख पाते हैं। तुम एकदम निकृष्ट काम करके भी सुख पाते हो। हमें और ज़्यादा भ्रमित करने के लिए एक चीज़ और होती है, आप बिल्कुल सही काम करके भी दुःख पा सकते हो। यहाँ पर कर्म और कर्मफल का खेल थोड़ा उलझा हुआ है, आदमी की समझ से बाहर का है।

तुमने अगर कर्मफल के आधार पर कर्म चुनना शुरू कर दिया तो तुम बड़ी मुसीबत में फंस जाओगे क्योंकि गलत काम करने पर क्या मिल रहा है? सुख। सही काम करने पर क्या मिल रहा है? दुःख। अब अगर तुम कर्मफल के आधार पर कर्म…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org