तनाव और दबाव नहीं झेल पाते?

तनाव और दबाव नहीं झेल पाते?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, नमस्ते। मैं तनाव, दबाव माने प्रेशर सिचुएशन (तनावपूर्ण स्थिति) झेल नहीं पाता हूँ। जैसे ही मुझ पर दबाव पड़ता है बाहर से, मैं टूट जाता हूँ अन्दर से। अभी जवान हूँ तो ये हालत है और पूरी ज़िन्दगी सामने पड़ी है। न जाने क्या-क्या चुनौतियाँ आनी हैं, कैसे झेलूँगा?

आचार्य प्रशांत: देखो, कोई भी बाहरी दबाव किसी ऐसी ही चीज़ को तोड़ सकता है जिसको वो स्पर्श कर सके, है न? बात समझ रहे हो? जो चीज़ जिस आयाम में है, वो उस आयाम के ही किसी बल द्वारा तोड़ी जा सकती है। आयाम समझते हो? तल। अब उदाहरण के लिए, ये जो मेज़ है मेरे सामने, ये एक आयाम है, एक तल है, एक डायमेंशन है। ठीक है? इसको मैं एक मुक्का मारकर शायद तोड़ सकता हूँ, लेकिन इसको तोड़ने के लिए ज़रूरी होगा कि मुक्का इसी तल पर आकर इस मेज़ से टकराए। है न?

अगर इससे कुछ दूर जाकर के या ऊपर जाकर के या नीचे जाकर के मैं मुक्केबाज़ी करूँ, मैं दीवार पर मुक्का मारूँ या मैं हवा में मुक्का चलाऊँ तो क्या ये मेज़ टूटेगी? नहीं न। कोई भी वस्तु अपने ही तल की किसी ताक़त का दबाव अनुभव कर सकती है।

तुमने लिखा है — दबाव पड़ता है बाहर से, टूट जाता हूँ मैं अन्दर से। बाहर की चीज़ अन्दर की चीज़ को कैसे तोड़ सकती है? इसका मतलब तो फिर ये है कि अन्दर-बाहर एक है। इसका मतलब जो अन्दर है, वो अन्दर है ही नहीं अभी पूरी तरीक़े से। अन्दर और बाहर में सन्धि है। अन्दर और बाहर में एक एका है। नहीं तो बाहर जो हो रहा होता वो हो रहा होता, अन्दर तक पहुँच ही नहीं होती बाहर वाले की। बाहर का आयाम अलग होता, अन्दर का आयाम अलग होता। बाहर के आयाम…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org