ढ़र्रे पर चलना है या समझदारी पर?

जहां आलस है वहां तुम स्मृति में चलोगे। स्मृति पर चलना आसान लगता है न, आलस है, कुछ पुराने पैमाने या आदर्श हैं उनके अनुसार अपने कदम बढ़ा लो। अभी भी क्या करना है इसका फैसला पुराने अनुमानों के आधार पर कर डालो, यह है स्मृतिबद्ध जीवन। इंटेलीजेंस माने बोध पर चलना, उसमें जान लगती है, ऊर्जा लगती है। उसमें अपने आपको उपस्थित रखना पड़ता है।

स्मृति पर चलने वालों को सिद्धान्तों का सहारा मिलता है और जो बोध से चलते हैं उन्हें सिद्धान्तों का कोई सहारा नहीं मिलता।

बोध से वही चल सकता है जिसमें अनअपेक्षित को झेल जाने की श्रद्धा हो।

स्मृति पर चलना आलसी लोगों के लिए ठीक है, बोध में जीना उसी के लिए है जिसमें ऊर्जा हो और श्रद्धा हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org