डिप्रेशन (अवसाद) क्यों होता है?

डिप्रेशन तब तक नहीं हो सकता जब तक अपने आप को बहुत मजबूर अनुभव न करो। और मजबूर हम नहीं होते, मजबूर हमें हमारी अन्धी कामनाएँ बनाती हैं।

कामनाओं में भी कोई दिक्कत नहीं है अगर वो अन्धी न हों। जो कामना आपको अन्धेरे से रोशनी की ओर ले जाती हो, शुभ है वो कामना।

कुछ ऐसा माँग रहे हो जो मिल सकता ही नहीं। फिर जब पाओ कि वो मिल नहीं रहा तो डिप्रेस्ड हो जाओ, ये कहाँ की समझदारी है, बताओ?

डिप्रेशन कोई चोट तो होती नहीं कि बाहर से आकर हाथ पर किसी ने मार दिया और तुम कहो ये डिप्रेशन है। डिप्रेशन तो एक मानसिक घटना होती है न! उस घटना के केंद्र पर बैठा होता है अज्ञान, और अज्ञान-जनित कामना। तुम कुछ ऐसा चाह रहे होते हो जो हो सकता ही नहीं है। तुम आधी रात में सूरज की माँग कर रहे होते हो। तुम शराब पीकर होश चाह रहे होते हो। वो हो नहीं सकता। फिर वो जब होता नहीं है, तो बुरा लगता है, बार-बार बुरा लगता है, उस स्थिति को तुम नाम दे देते हो अवसाद का।

कुछ अगर सही है, तो उस पर डटे रहो। कुछ अगर झूठा और भ्रामक है, तो छोड़ कर आगे बढ़ो। ये अवसाद बीच में कहाँ से आ गया?

तुम्हारी कामना, तुम्हारा लक्ष्य, अगर वो असली है, सुन्दर है और तुम्हें सच्चाई और मुक्ति की ओर ले जाता है तो बढ़ा चल नौजवान। और जिन चीज़ों से अटके हुए हो, अगर वो मूर्खतापूर्ण हैं, तो तुम्हारे हित में यही है कि स्वीकार लो कि वो मूर्खतापूर्ण हैं, कम से कम कामना करना तो छोड़ दो।

या तो इतना दम दिखाओ कि बेवकूफ़ी की चीज़ों में अटका हूँ तो आगे बढ़ जाऊँगा। आगे नहीं बढ़ सकते, मान लो अटक ही गये हो, तो अटके ही रहो पर ये उम्मीद तो छोड़ दो कि यहाँ तुम्हें कुछ बहुत ऊँचा मिल जाना है।

जहाँ पर कामना नहीं है वहाँ विषाद नहीं हो सकता।

डिप्रेशन के विषय को और अधिक गहराई से समझने के लिए इस सत्र को देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org