डर से निडरता की ओर कैसे जाएँ?
तुमने भय का चुनाव करा है। तुम्हारी हालत ऐसी है, तुम्हारी नियत ऐसी है, तुम्हारी आत्म-परिभाषा ऐसी है, तुम्हारे इरादे और तुम्हारी जिद्द ऐसी है कि तुम्हें भय को पकड़ कर रखना है। जहाँ लालच है वहाँ भय है, जहाँ झूठ है वहाँ भय है, जहाँ अंधेरा है वहाँ भय है।
भय पीछे आता है, पहले कामना आती है। जिसको लालच नहीं उसे डर होगा क्या? जो झूठ नहीं बोल रहा वो किससे डरेगा?
अब अभय तो चाहिए लेकिन लालच नहीं छोड़ने हैं, कामनाएँ नहीं छोड़नी, ज़िंदगी के हसीन सपने नहीं छोड़ने। ज़िंदगी के हसीन सपने पालते ही रहोगे तो साथ में भय मिलता ही रहेगा।
अभय कहाँ से आ जाएगा?
हम असंभव माँग करते हैं!
आत्मबल चाहिए इस संकल्प के लिए कि गलत काम में नहीं फंसे रहना है, बुद्धिबल चाहिए सही काम ढूंढने के लिए, बाहुबल चाहिए सही काम करने के लिए।
डर जब गलत जीवन बिताने में भी लगता हो और सही ज़िंदगी बिताने में भी, तो कम से कम ‘सही डर’ का चयन करो।
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