डर: बुरा भी, अच्छा भी

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, पिछले सत्रों में आपने जो विधि बताई थी, उससे काफ़ी वासनायें इंद्रियों के द्वार पर खड़ी रहती हैं, मैं भाव करता हूँ लेकिन छूट-छूट जाता है, और फिर एक डर लगता है कि जैसे पहले हम इनसे पकड़ जाते थे, फिर पकड़ जाएँगे। तो वो डर क्यों है ये बताने की कृपा करें।

आचार्य प्रशांत: डर है तो दोनों बातें हैं- संभावना अभी बची होगी वृत्तियों-वासनाओं में फँस जाने की, तो डर उठता है और साथ ही साथ डर का उठना यह भी बताता है कि…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org