डर पूरी तरह हटाना है?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं आपको दस महीनों से सुन रही हूँ। मुझे डर बहुत लगता है। कृपया मार्गदर्शन करें कि इस डर को कैसे दूर करूँ।
आचार्य प्रशांत: इतनी आसानी से हट जाने वाली चीज़ नहीं है। एक प्रक्रिया है ये पूरी, काम क्रमशः होता है।
तुम दस महीने से सुन रही हो, दस महीने में थोड़े ही होता है, दस महीने में तो बच्चा पैदा होता है। हमें उसे बड़ा करके इंसान बनाना है। वक़्त तो लगता है न? ये माँग ही क्यों? ये धारणा कहाँ से आ गयी कि तीन महीने, दस महीने, दो साल में डर दूर हो जाएगा?
यहाँ तो मैं ही रोज़ दस ग़लतियाँ करता हूँ अभी। मेरी बात सुनकर के आपकी सारी ग़लतियाँ कैसे हट जाएँगी? रोज़ दस खोट अपनी दिखाई देती है, और ऐसा नहीं कि अगले दिन हट जाती है, वो लौटकर आती है, बड़ी जद्दोजहद रहती है थोड़ी-थोड़ी प्रगति करने में।
हम शायद ये मानते हैं कि हम बहुत अच्छे लोग हैं, हमको कुछ ऐसी धारणा है कि मुक्ति पर, आनन्द पर तो हमारा हक़ होना चाहिए, तो हमें बड़ी तकलीफ़ होती है जब हमें दिखाई पड़ता है कि साहब, मुक्ति हो नहीं रही है या कि दस महीने कोशिश कर ली, तरक़्क़ी नहीं हो रही है, आन्तरिक प्रगति नहीं हो रही है। ये हमको क्यों लगता है? क्योंकि लगता है कि अब तक हो ही जानी चाहिए थी। जैसे कोई कैंसर का मरीज़ हो, आज उसकी दवाई शुरू हुई हो और अगले हफ़्ते आ करके पूछे कि बचा तो नहीं अब कैंसर।
वो ये समझ ही नहीं पा रहा है कि उसकी बीमारी कितनी गहरी है। हमें एकदम नहीं पता कि हम कौन हैं। साहब, ऐसे ही नहीं सन्तों ने बार-बार रो-रोकर के माँगा है न, कि मुझे जन्म-मरण…