डर के समग्र स्वीकार में ही निडरता है
तुम तो डरो!
किससे?
अपने आप से क्योंकि जो कुछ भी बाहर नकली है, उससे तुम्हारे भीतर जो नकली है वही साझा रखता है। कोई भी छल, प्रपंच, धोखा तुम्हारे उस बिंदु से आ करके जुड़ता है जो उसके ही जैसा होता है।
बाहर का धोखा तुम्हारे भीतर के धोखे से आ के जुड़ेगा। बाहर धोखा हो और भीतर सच्चाई तो कोई रिश्ता बनेगा ही नहीं।
बाहर का आकर्षण तुम्हारे भीतर के उस बिंदु से आकर के जुड़ता है जो आकर्षित हो जाने के लिए तैयार ही बैठा हुआ है। जगत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ता अगर तुम स्वयं बिगड़ने के लिए तैयार न बैठे हो।
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