डर और सावधानी में क्या रिश्ता है?
दो-तीन बातें हैं, उन्हें समझ लेंगे तो स्पष्ट हो जाएगा। सावधानी कभी-भी मन में डेरा डालकर नहीं बैठती। तुम गाड़ी चला रहे हो, चला रहे हो, सामने कोई आ गया, तुम क्या करते हो? ब्रेक लगा देते हो। और फ़िर वो व्यक्ति पीछे छूट गया। क्या तुम उसके बारे में सोचते रहते हो, सोचते रहते हो, सोचते रहते हो?
सावधानी तात्कालिक होती है, उसी समय की।
वो अपना कोई अवशेष पीछे नहीं छोड़ती है।