डर और मदद

डर तुम्हें हमेशा किसी बाहर वाले से लगता है और डर में तुम्हें हमेशा ये लगता है कि कोई बाहर वाला तुम्हारा बड़ा भारी नुकसान कर देगा। डर हमेशा तुमसे यही कहता है कि बाहरी की कोई परिस्थिति, कोई दुर्घटना, कोई व्यक्ति तुम्हारा कोई बहुत बड़ा नुकसान कर देगा।

डर यही है न?

“ऐसा हो गया तो क्या होगा?” यही लगता है न डर में?

डर तुम्हें इसलिए लगता है क्योंकि तुम्हें अपने ऊपर ये विश्वास नहीं है कि, “कुछ भी हो जाए, मैं सलामत रहूँगा। कितना भी बड़ा नुकसान हो जाए, हम झेल लेंगे, हम मस्त रहेंगे।” तुम्हें लगातार ये एहसास बना रहता है कि तुम्हारे पास जो कुछ है, वो तुम्हें दुनिया ने दिया है और दुनिया अगर छीन ले गई तो तुम बिल्कुल भिखारी हो जाओगे। तुम्हारे पास कुछ बचेगा ही नहीं।

समझो, डर का सिर्फ एक निवारण है कि, “आओ! जो ले जा सकते हो, ले जाओ। जितनी बुरी से बुरी घटना होनी हो, हो। हम जी जायेंगे। हम ये नहीं कह रहें कि तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, हम कह रहे हैं कि तुम हमारा जो बिगाड़ सकते हो, बिगाड़ लो। हम बिल्कुल मना नहीं कर रहे हैं कि तुम्हारी ताकत नहीं है हमारा कुछ बिगाड़ लेने की। हम कह रहे हैं, तुम्हारी पूरी ताकत है हमारा नुकसान कर देने की और तुम जितना चाहो हमारा नुकसान कर लो। हम बस इतनी-सी बात कह रहे हैं कि उस सारे नुकसान के बाद भी हम जी जायेंगे।” अब डर नहीं लगेगा। तुम कहो कि, “जो बुरे से बुरा हो सकता है हो जाए, हम कायम रहेंगे। हम नहीं कहते कि कुछ बुरा नहीं होगा।”

तुम ये इच्छा करो ही मत कि तुम्हारे साथ कुछ बुरा न हो। तुम ये कहो कि, “जो बुरे से बुरा भी हो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org