डरो नहीं, तुम सुरक्षित हो

आदमी के विकास की सारी यात्रा उसके अपने स्वभाव के विरोध की यात्रा है।
विकास अस्तित्व से शत्रुता का नाम है और यही कारण है कि आज आदमी का विकास वहाँ पहुँच गया है जहाँ अस्तित्व समूल विनाश पर खड़ा है।
आदमी जितना विकसित होगा प्रकृति का उतना विनाश होगा क्योंकि विकास की हमारी परिभाषा ही यही है, विरोध।
जो कुछ भी प्राकृतिक है, उसका विरोध करना ही हमारे लिए विकास है।