डरे मन को साहस नहीं, कुछ और चाहिए

साहस की ज़रूरत तो तब पड़े न जब वाकई तुम्हारे सामने कुछ डरावना खड़ा हो।

एक आदमी पी कर के पेड़ को भूत समझ रहा है और काँपे जा रहा है। उसको साहस चाहिए या होश चाहिए?

किसी को साहस नहीं चाहिए। तुम्हें होश चाहिए!

साहस माँगना और ज़्यादा दर्शाता है कि बड़े बेहोश हो।

अस्तित्व में क्या है जो तुम्हें डरा रहा है? तुम हो कौन कि जिसका कोई कुछ छीन लेगा?

जिनके पास कुछ ऐसा होता है जिसका मूल्य होता है, वह न सिर्फ़ मूल्य जानते हैं बल्कि यह भी जानते हैं जो कुछ मूल्यवान है वह लुट नहीं सकता।

और जिनके पास सिर्फ़ वही सबकुछ होता है जो मूल्यहीन है, वह न यह जानते हैं कि मेरा जीवन मूल्यहीन से भरा हुआ है और न ही यह जानते हैं कि मूल्यहीन से जीवन भरना, जीवन की बर्बादी है। और सोने पर सुहागा यह कि उन्हें बड़ा डर रहता है कि मेरा सोना-चाँदी छिन न जाए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org