डरते हो क्योंकि भूले बैठे हो

जिसने अपना एकांत पा लिया, उसने अपने आप को पा लिया। उसे पूरी दुनिया मिल गई। और जो दुनिया में ही खोया रहा, उसे दुनिया तो मिली ही नहीं, उसने अपने आप को भी नहीं पाया।तो वो हर अर्थ में भिखारी रह गया। अब तुम देख लो कि तुम्हें क्या करना है।

पहले हिम्मत पैदा करो, पहले थोड़ा अपने डरों को जल जाने दो, उन्हें पोषण मत दो।

तुम तो अपने डर के पक्षपाती बन के खड़े हो जाते हो। तुम तो चाहते हो कि तुम्हारे डर कायम रहें।

जहाँ डर जले वहाँ तुमने अपने आप को पा लिया। डर ही तो रास्ता रोक रहे हैं।

एक बार अपने आप को पा लोगे फिर सबके हो जाओगे।

अंतस का अर्थ यही होता है, ‘हम बादशाह हैं, हम पूरे हैं और हम मौज में है, हमारी मस्ती अखण्ड है, स्थितियां बदलती रहें, हमारी मस्ती नहीं बदलती’।

यही है अंतस, यही है तुम्हारी बादशाहत। ये तुमसे भुलवा दी गई है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org