ठरकियों को ‘बोल्ड’ बोलते हो

प्रश्नकर्ता: सर, आप आज की जनरेशन (पीढ़ी) के तौर-तरीकों का इतना विरोध क्यों करते हैं? हम चाहे बोल्ड कपड़े पहनें या बोल्ड लैंग्वेज (भाषा) यूज़ (इस्तेमाल) करें, हममें कम-से-कम बोल्डनेस तो है।

आचार्य प्रशांत: मतलब कपड़े उतार कर कोई घूम रहा है तो वो बोल्ड हो गया? और कोई गाली-गलौज कर रहा है तो वो बोल्ड हो गया? बोल्ड माने क्या? निर्भय, है न? हिम्मतवर, निडर।

डर समझती हो? डर हम अपने शरीर में जन्म के साथ लेकर पैदा होते हैं। वो डर हमसे बार-बार बोल रहा होता है कि वही सब-कुछ करो जो तुमसे तुम्हारा शरीर करवा रहा है और जो तुमसे तुम्हारा समाज करवा रहा है।

जो भीतर हमारे डर बैठा है वो हमसे ये कहता है कि वही सब कुछ करो जो तुमसे तुम्हारा शरीर करवा रहा है। शरीर क्या करवा रहा है? शरीर कहता है — खाओ, पियो, आराम करो, सेक्स करो। और वो सब कुछ करो जो तुमसे तुम्हारा समाज करवा रहा है। समाज क्या करवा रहा है? समाज कह रहा है — इस तरह की बोली बोलो, इस तरह की शिक्षा लो, इन जगहों पर घूमने जाओ, ऐसे कपड़े पहन लो। ये सब समाज करवा रहा है हमसे।

तो एक डर होता है जो हम सबके भीतर होता है और जन्म से ही होता है और वो हमसे कहता है — शरीर के ख़िलाफ़ मत जाना, समाज के ख़िलाफ़ मत जाना।

तो अब बताओ फिर कि बोल्डनेस की डेफिनिशन (परिभाषा) क्या हुई? बोल्डनेस माने क्या हुआ? बोल्डनेस माने हुआ शरीर जो तुमसे करवाना चाहता है वो अंधे होकर कर नहीं देना — ये हुई निडरता, बोल्डनेस*। और *बोल्डनेस ये हुई कि दुनिया जो कुछ कर रही है अंधे होकर के वही नहीं करने लग जाना…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org