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ठंड रख!

एक सीमा से ज़्यादा तनाव सहने की आदत ही नहीं होनी चाहिए।

“थोड़ा बहुत चलेगा, ज़्यादा करोगे तो हम सो जाएँगे।”

‘सो जाएँगे’ माने गायब हो जाएँगे। ये जीवन जीने का एक तरह का तरीका है, एटिट्यूड है। एक कला है।

इसको साधना पड़ता है।

“देखो भई, थोड़ा बहुत लोड (भार) हम ले लेंगे, पर हम एक सीमा जानते हैं। उस सीमा से ऊपर चीज़ें जब भी गुज़रेंगीं हम कहेंगे, ‘जय राम जी की’।”

हमें पता होना चाहिए कि इससे आगे हम नहीं झेलेंगे।

कोई भी चीज़ इस संसार की इतनी कीमती नहीं कि उसके लिए अपनी आत्यंतिक शांति को दाँव पर लगा दें।

इसके मायने क्या? इस बात का ज़मीनी अर्थ क्या हुआ?

इस बात का ज़मीनी अर्थ हुआ –

“ठंड रख!”

“होण दे”

“मैंनू की”

क्या?

“मैंनू की”

सिरदर्द बहुत हो रहा है। किसका सिर? पड़ोसी का? पड़ोसी का नहीं, यही सिर, जिसको ‘अपना’ सिर कहते हैं। पर अपना सिर भी दर्द हो रहा है तो क्या बोलना है?

“मैंनू की।”

बैंक से फोन आया कि आप लुट गए, तबाह हो गए, आपके खाते से कोई सबकुछ निकाल कर ले गाया। यहाँ से जवाब क्या जा रहा है? “मैंनू की। मुझे क्या फ़र्क पड़ता है। मेरा क्या है इसमें?”

व्यवहारिक अर्थों में ये चीज़ साक्षित्व के करीब हुई।

साक्षित्व का अर्थ ही है —

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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