ठंड रख!
सभी समस्याओं से एक झटके में मुक्ति
रामबाण सूत्र
ठंड रख!
आचार्य प्रशांत: एक सीमा से ज़्यादा तनाव सहने की आदत ही नहीं होनी चाहिए।
“थोड़ा बहुत चलेगा, ज़्यादा करोगे तो हम सो जाएँगे।”
‘सो जाएँगे’ माने ग़ायब हो जाएँगे।
ये जीवन जीने का एक तरह का तरीका है, एटिट्यूड (रवैया) है।
एक कला है।
इसको साधना पड़ता है।
समझ रहे हैं?
“देखो भई, थोड़ा बहुत लोड (भार) हम ले लेंगे, पर हम एक सीमा जानते हैं। उस सीमा से ऊपर चीज़ें जब भी गुज़रेंगीं हम कहेंगे,
‘जय राम जी की’।”
हमें पता होना चाहिए कि इससे आगे हम नहीं झेलेंगे।
“कोई भी चीज़ इस संसार की इतनी क़ीमती नहीं कि उसके लिए अपनी आत्यंतिक शांति को दाँव पर लगा दें।”
इसके मायने क्या? इस बात का ज़मीनी अर्थ क्या हुआ?
इस बात का ज़मीनी अर्थ हुआ –
“ठंड रख!”
“होण दे!”
“मैंनू की!”
क्या?
“मैंनू की!”