झूठ नहीं है संसार
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, कभी-कभार संसार निरर्थक लगता है लेकिन ज़्यादा समय संसार ही सच लगता है। दिल है कि मानता नहीं, क्या करें? आपके चरणो में आश्रय दो।
आचार्य प्रशांत: संसार सच लगता है तो कोई ग़लती नहीं हो गई। झूठ भी नहीं है संसार। बात सच-झूठ की नहीं है, लेनदेन की है। आप और हम बैठे हैं, यह भी संसार ही है। क्या करेंगे इसको झूठ ठहरा कर? अब इस दिए की लौ को देख रहा हूँ, उसको बचाना चाहता हूँ (दिए को संभालते हुए)। क्या करेंगे यह…