ज्ञान प्राप्ति का मार्ग, और बाधाएँ

प्रश्न: आचार्य जी, क्या ज्ञान प्राप्ति के लिए कर्म अनिवार्य है? कर्म के अलावा ज्ञान प्राप्ति के कौन-कौन से साधन हैं? ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग में बाधा क्या है?

आचार्य प्रशांत जी: ज्ञान की प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन — तुम्हारी मुमुक्षा है। साधन तुमने कहा न। स्वयं आदि शंकराचार्य ‘साधन चतुष्टय’ बता गए हैं। उसमें न जाने कितने गुणों का उन्होंने वर्णन किया है, जो साधक में होने चाहिए। अगर साधक को परम-पद चाहिए, अगर साधक को परम-ज्ञान चाहिए, तो उसमें बहुत गुण होने चाहिए — विवेक, वैराग्य, शम, दम, उपरति, तितिक्षा, और सबसे ऊपर, मुमुक्षा।

तो ज्ञान की प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है — तुम्हारी मुमुक्षा।

मुमुक्षा माने — मुक्ति की इच्छा।

इसी को मैं कह रहा हूँ — तुम्हारी नीयत, इरादा, लक्ष्य, ध्येय।

ध्येय तो बनाओ, वही है ज्ञान की प्राप्ति का साधन।

और समझना। मैं मुक्ति का सम्बन्ध ज्ञान से नहीं जोड़ता, बोध से जोड़ता हूँ। क्योंकि ‘ज्ञान’ शब्द जिस अर्थ में आदि शंकर प्रयोग करते हैं, वो शब्द आज की भाषा में नहीं है।

उस समय में ‘ज्ञान’ शब्द को इतना सम्मान दिया जाता था, कि मात्र आध्यात्मिक ज्ञान को ही ‘ज्ञान’ कहा जाता था। आज तो तुमने ज्ञान को बहुत सस्ता शब्द बना दिया है न। तो तुम कहते हो, “ज़रा शेयर मार्किट का ज्ञान चाहिए था।” और पचास तरीके का ज्ञान। तो इसीलिए मैं ‘बोध’ कहता हूँ। ज्ञान तो कमॉडिटी है, ज्ञान तो वस्तु है। ज्ञान तो सूचना के बहुत करीब की बात है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org