ज्ञान और बोध में अंतर

प्रश्नकर्ता: बोध क्या है? अबोध कौन है और आत्मबोध कब प्राप्त होता है?

आचार्य प्रशान्त: भाषा की मजबूरी यह है कि उसे वो सब भी कहना पड़ जाता है जो कहा नहीं जा सकता और जिसे कहने की चेष्टा भी नहीं करनी चाहिए। उसमें खूबसूरती तो है पर ख़तरा भी उतना ही गहरा है। खूबसूरती इसीलिए है क्योंकि आदमी के मन से निकली भाषा ने ये स्वीकार तो किया कि आदमी के मन से आगे कुछ है। और ख़तरा यह है कि आदमी के मन से यदि भाषा निकली है, यदि शब्द निकला है तो वो कभी भी ये मानने को उत्सुक हो सकता है कि बात मन की ही तो है, मन से आगे की नहीं।

समझिएगा, दो शब्द हैं — ज्ञान और बोध। दोनों का अन्तर देखना है। ज्ञान की बात नहीं की जा सकती बिना उसको देखे जिसे ज्ञान चाहिए। जो ज्ञान का संग्रह करता है। कौन है वो? किसे ज्ञान चाहिए? क्यों ज्ञान चाहिए? और ज्ञान संगृहीत होने से उसे फायदा क्या होता है?

देखिए हम कोई दूर दराज़ की, किसी और दुनिया की बात नहीं कर रहे हैं। हम हमारे-आपके दैनिक जीवन की बात कर रहे हैं। इसमें कोई ऐसी बात नहीं है जो किसी विशिष्ट उपलब्धी से आती हो। जो मैं कह रहा हूंँ वो आपको भी पता है, बस इस मौके पर उसे कहने का दायित्व मेरा है इसलिए कह रहा हूँ। मैं आपसे ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ जो नया है और इस कारण सिर्फ़ मैं कह सकता हूँ। एक-एक बात जो मैं कह रहा हूंँ, वो आप जानते हैं।

तो किसे ज्ञान चाहिए और क्यों ज्ञान चाहिए? ज्ञान माने जानना। कौन जानना चाहता है?

प्र: लोग जानना चाहते हैं।

आचार्य: हम ही हैं जो जानना चाहते हैं। और हम क्यों और कब जानना चाहते हैं?

प्र: जब मन में कोई सवाल उठता है तो उसका जवाब ढूँढने के लिए, जिज्ञासा के लिए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org