ज्ञानी वो जिसके लिए अब कुछ भी आफ़त नहीं है

मन के निरोध की कोशिश वैसी ही है जैसे मैं चल-चल कर रुकने की कोशिश करूँ। मन को रोकने की कोशिश वैसी ही है जैसे की मैं ख़ूब सोचूँ कि कैसे न सोचा जाए। मन को रोकने की कोशिश वैसी ही है जैसे मैं कोयला लेके किसी दीवार को साफ़ करने की कोशिश करूँ।

हम क्यों भूल जाते हैं कि कोशिश करने वाला कौन है। हम क्यों भूल जाते हैं कि हर कोशिश के पीछे उसकी वृत्ति अपने आप को ही कायम रखने की है। मन किसी भी बात के लिए प्रस्तुत हो जाएगा यदि उससे उसे बचे रहने में सहायता मिलती है। मन ज़बरदस्त बहरूपिया है, वो कोई भी रूप ले सकता है।

प्राज्ञ वो है जिसने जीवन के प्रति अपने सारे प्रतिरोध छोड़ दिये हैं। जिसका मन ना पकड़ने को आतुर है और ना छोड़ने को। जिसको ना संसार चाहिेए ना मुक्ति। जिसको न मोह चाहिए न मोक्ष। मन से मुक्त और जीवन में मस्त।

मन को आफतें चाहिेए, मन आफतों से लड़ने में ताकत पाता है। प्राज्ञ वो है जिसकी ज़िन्दगी से आफतें हट गईं।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant