जो स्त्री के शरीर में संतुष्टि खोजते हों

जो स्त्री के शरीर में संतुष्टि खोजते हों

प्रश्नकर्ता: आपने कहा है कि हम अपने-आप में पूर्ण होते हैं लेकिन ये मुझे कहीं भी दिखाई नहीं देता। मैं अपनी पूर्णता एक औरत के शरीर में ढूँढता हूँ। मुझे गर्लफ्रैंड की हमेशा चाह बनी रहती है, तो ये वक्तव्य मेरी समझ में नहीं आता। अब ये भी मैंने सुन रखा है कि हममें आंतरिक अपूर्णता होती है। मुझे भी इस अपूर्णता का थोड़ा-थोड़ा अहसास होता है। कृपया इस विषय में स्पष्टता प्रदान करें।

आचार्य प्रशांत: पूर्णता है ये कभी समझ नहीं आएगा। अपूर्णता है, ये समझ में आने की ज़रूरत नहीं क्योंकि बात ज़ाहिर है। पूर्णता कोई समझ में आने वाली चीज़ है? समझ हमारी छोटी-सी और पूर्णता अनंत, तो वो कभी समझ में आएगी? हमारी समझ का दायरा ही कितना है? जितना हमारा खोपड़ा। इसका व्यास ढाई इंच और समझ माने वो जो अति व्यापक है, तो वो तो इसमें आनी नहीं है।

अपूर्णता को देखो और उसमें समझने जैसा कुछ बचता नहीं है। क्या समझना है? जो है वो स्पष्ट है, सामने है। कह तो रहे हो कि किसी दूसरे व्यक्ति में पूर्णता ढूँढते हो, तो ज़ाहिर ही है न कि क्या अनुभव करते रहते हो हर समय अपने-आपको? अपूर्ण!

प्र: डिस्सैटिस्फाइड (बेचैन)

आचार्य: बस हो गया! पूर्णता को समझने की क़वायद में मत लग जाना। असफल रहोगे, हारोगे।

प्र: ये जो दूसरे पर निर्भरता है, ये नहीं चाहता मैं।

आचार्य: देखते रहो इसको कि, न चाहना कि दूसरे पर निर्भर रहो, ये भी तो डर का ही द्योतक है। ये भी तो डर का ही द्योतक है कि दूसरे पर निर्भर रहूँगा तो कुछ गड़बड़ हो सकती है…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org