जो सिर्फ़ पेट के लिए जिए वो जानवर
आदमी काम इसलिए करता है क्योंकि आदमी को सिर्फ़ पेट नहीं चलाना है, आदमी को कुछ और चाहिए। पर अधिकांश लोग काम के नाम पर सिर्फ़ पेट चलाते हैं, और धिक्कार है ऎसी ज़िन्दगी पर जो पेट के लिए जी जा रही है।
चाहे अपना पेट हो या दूसरे का पेट हो!
पेट के लिए जो जी रहा है, सो पशु है।
मनुष्य को कर्म करने हैं, और समस्त कर्मों का एक ही आशय हो सकता है - मुक्ति।
जो कोई पेट के लिए नौकरी कर रहा है, चाहे वो ऊँची से ऊँची नौकरी कर रहा है, वो है जानवर ही। तो ये जो नौकरीपेशा लोग हैं, मैं इनसे कह रहा हूँ, ये कर क्या रहे हो?
पशुओं से भी गए-गुज़रे हो? पशु तो वही कर रहे हैं जो करने के लिए वो निर्मित हैं।
भोग के अलावा मुझे बताओ कोई वजह है तुम्हारे पास जीने की? सपने भी है तुम्हारे जितने भी, उनके केंद्र पर क्या बैठा है? सारी तरक्की चाहते किसलिए हो? उपभोग के लिए ही अगर जी रहे हो, उपभोगता ही अगर बन गए हो, तो छि!
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