जो सही है वो करते क्यों नहीं?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी ये मैं अपनी पर्सनल लाइफ़ (निजी ज़िन्दगी) के बारे में पूछना चाह रही हूँ। तीन-चार साल पहले तक मैं ये सोचती रही कि शायद मैं बहुत सच्ची हूँ, मैं बहुत सही हूँ। ये तीन-चार सालों में ये लगा, पीछे की लाइफ़ (ज़िन्दगी) देखती हूँ, तो कभी पहले ये मैं प्राउड (गौरवान्वित) फील (महसूस) करती थी कि मैं अपने पिता के काम आई, मैं अपने पति के काम आई, मैं फ़लाने के काम आई, ये आई, वो आई।