जो सही है वो करते क्यों नहीं?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी ये मैं अपनी पर्सनल लाइफ़ (निजी ज़िन्दगी) के बारे में पूछना चाह रही हूँ। तीन-चार साल पहले तक मैं ये सोचती रही कि शायद मैं बहुत सच्ची हूँ, मैं बहुत सही हूँ। ये तीन-चार सालों में ये लगा, पीछे की लाइफ़ (ज़िन्दगी) देखती हूँ, तो कभी पहले ये मैं प्राउड (गौरवान्वित) फील (महसूस) करती थी कि मैं अपने पिता के काम आई, मैं अपने पति के काम आई, मैं फ़लाने के काम आई, ये आई, वो आई।

अब ये लगता है कि मैं किसी के काम नहीं आई, मैंने सिर्फ अपना मतलब निकाला। जहाँ मुझे पिता से मोह था तो पिता की टेंशन (तनाव) को दूर करने के लिए झूठों का सहारा लिया, जहाँ पति से मोह हुआ तो वहाँ मैनीपुलेशन (चालाकी से काम निकलवाना) हुआ, जहाँ अभी बेटे से मोह है तो उसकी ज़िन्दगी में भी बहुत मतलब मैनीपुलेशन जैसा ही लगता है।

पहले तेईस में जब शादी हुई, उसके पहले शायद ही कभी झूठ का मुझे नहीं लगता इतना सहारा लिया, पर शादी के बाद और माँ बनने के बाद और जब समाज में जो एक फ़ेक (नकली)… मुझे तकलीफ जब आज होती है तो ये लगता है कि शायद पूरी ज़िन्दगी झूठ का आडम्बर ओढ़ के ही बिताई। सोचती यही रही कि नहीं सब कुछ सही है, सच्चा है, पर कहीं मुझे सच नज़र नहीं आया। मुझे अपने-आपमें बहुत स्वार्थ नज़र आता है, और अभी अंदर से एक तकलीफ रहने लग गई है कि ये जंजाल जो अंदर है, ये कैसे?

आचार्य प्रशांत: देखिए जिसको जो सही लगता है वो उसको करने के लिए यथासंभव सबकुछ करेगा। उसको आप रोक नहीं सकते।

ये एक मूल सिद्धांत समझिएगा। अगर आपको कोई चीज़ सही लग रही है — वो चीज़ कुछ भी हो सकती है — तो आप उसी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org