जो वचन आपसे न आए, वही मीठा है
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ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
~ संत कबीर
बड़ी गलती कर देते हैं हम, हमें लगता है कबीर कह रहे हैं: ऐसी वाणी बोलिये जिससे मन का आपा खो जाए, नहीं । कबीर कह रहे हैं - ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय - मन का आपा पहले खोया है, वाणी उससे उद्भूत हो रही है। ऐसी वाणी बोलो, मन का आपा खो कर। वाणी तो चरित्र है, आचरण है, वो तो फल है। हर कर्म के, हर फल के केंद्र में तो कर्ता बैठा है ना। पहले कारण आता है, फिर कार्य आता है।
जब वो मन, जो केंद्र में है, जो कर्ता है, अपने कर्तत्व का समर्पण कर देता है, तब वाणी मीठी हो जाती है और यही मधुरता की परिभाषा है। एक समर्पित मन जो कुछ कहेगा, वो मधुर। और यदि मन समर्पित नहीं, तो अगर शब्द मधुर प्रतीत हो रहे हैं, तो वो मधुरता फिर झूठी ही है।
अधिकांशतः जब आप मीठा सुनते हो, तो वो बड़ा प्रायोजित मीठा होता है। उस मिठास के पीछे कारण होता है, वो हलवाई की मिठास होती है, शक्कर की मिठास होती है। वो ऐसा ही होता है कि आटा चाशनी में डाला गया, चाशनी आटे का स्वभाव नहीं, आवरण है। अधिकांशतः जब आप मीठा सुनते हो, तो वो मीठा ऐसा होता है। कबीर दूसरे मीठे की बात कर रहे हैं। मन का आपा खो कर जो बोलना हो बोलो और जो बोलोगे उसी का नाम है ‘सुमधुर संभाषण’। और फिर ख्याल भी मत करो कि क्या बोल रहे हो, मीठा या कड़वा। कबीर ने कभी ख्याल नहीं किया कि वो मीठा बोलें। कबीर का डण्डा, ऐसी चोट देता है कि पूछो मत, और बड़ा सौभाग्य होगा तुम्हारा अगर कबीर का डण्डा तुम्हें लगे।
‘औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय’
जो स्वयं शीतल है, मात्र वही दूसरों को शीतलता दे सकता है। जब तक तुम शीतल नहीं, तब तक तुम दुनिया को मात्र जलन ही दोगे। तपता हुआ लोहा अगर किसी को स्पर्श करे, तो उसे शीतल थोड़े ही कर देगा।
हम सब जलते हुए पिंड हैं, हमारा होना ही जलन है हमारी। हमारा अहंकार ही जलन है हमारी, हम जहाँ से निकल जाते हैं, वहां आंच फैला देते हैं।
कभी गौर किया है आपने कि आपके होने भर का, आपके माहौल पर क्या प्रभाव पड़ता है ? हम में से अधिकांश ऐसे हैं कि किसी शांत जगह पर पहुँच जाएँ, तो जगह पूरी कम्पित हो जाए, जैसे भूचाल। कभी आप कहीं मौन बैठे हों, तो फिर आपकी नज़र में आया हो, कि एक विक्षिप्त मन आता है, और ऐसे उसके कदम होते हैं, ऐसे उसके वचन होते हैं, ऐसा उसका होना होता है कि उसको पता भी नहीं लगता कि उसने शांत झील में कैसी कैसी लहरें उठा दीं। जैसे साफ़ फर्श हो, और किसी के क़दमों में कीचड़ ही कीचड़ लगा हो, और वो ऐसा बेहोश कि वही अपने पैर ले कर के साफ़ सफ़ेद फर्श के ऊपर से निकल गया। उसे पता भी नहीं उसने क्या…