जो भरम उसे भरम, जो परम उसे परम

जीवन में जो तुम्हें मिल रहा है, वो ठीक वैसा ही है जैसी तुम्हारी पात्रता है।

जीवन अगर तुम्हें लगता है कि कहीं तुम्हारा असम्मान कर रहा है, तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं तुमने सत्य का असम्मान करा है।

जिसे सत्य दिखाई देता है, उसे सत्य मिलेगा और जिसे लगता है कि भरम है, उसे भरम ही मिलेगा।

जो तुम्हारी जीवन के विषय में धारणा है, जीवन ठीक उसी रूप में तुम्हारे सामने आएगा। जीवन बदलना चाहते हो, तो धारणाएँ बदल दो, और अगर जीवन के पार जाना चाहते हो तो धारणाओं के पार चले जाओ।

आप सत्य को भी अगर भ्रम ही माने रहोगे, तो जीवन भी पूरे तरीके से भ्रमयुक्त होकर ही मिलेगा। और अगर भ्रम में भी यदि सत्य को देखोगे, तो सत्य ही सत्य चमकेगा। ये तुम पर है।

‘जो परम, उसे परम’ — जिसने परम को हाँ बोल दिया, उसे परम न मिले ऐसा हो नहीं सकता और तुम्हें अगर नहीं मिल रहा, तो किसी और को दोष मत देना, तुमने ही न बोल रखा है। ये अब तुम खोजो कि तुमने कैसे न बोला, किसी और को दोष मत देना। तुम्हीं न बोले जा रहे हो, इसीलिए तुम्हें मिलता नहीं।

जो अपने आप को छोटा मान रहा है, उसे ही बस जीवन में वो मिलेगा, जो छोटा है। अब क्यूँ शिकायत करते हो कि जीवन में कभी कुछ महत और हसीन मिला नहीं? तुमने ही अपने आप को छोटा बनाया था। तुमने ही अपने आप को छोटा बनाया था, तुमने ही दरवाज़े बंद करे हैं, तो अब देखो कि तुम किन-किन तरीकों से न बोल रहे हो? ख़ुद न बोलते हो, ख़ुद दरवाज़ा नहीं खोलते, इल्ज़ाम उस पर लगाते हो कि आता नहीं। वो खटखटाए जाए, तुम खोलो नहीं, इल्ज़ाम फिर भी उस पर है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org