जो भयभीत है उसके लिए भय ही विधि है
डर करनी डर परम गुरु, डर पारस डर सार।
डरत रहै सो ऊबरे, गाफिल खाई मार॥
~संत कबीर
वक्ता: डर करनी डर परम गुरु, डर पारस डर सार। डरत रहै सो ऊबरे, गाफिल खाई मार॥
एक और वचन उद्रत कर रहे हैं कि
भय बिन भाव न उपजे , भय बिन होई न प्रीत।
जब हृदये से भय गया, मिटी सकल जग रीत॥
वक्ता: तो कह रहे हैं कि ‘भय’ को लाभदायक क्यों कहते हैं कबीर? क्यों कह रहे हैं ‘भय’ को कबीर, लाभदायक?
श्रोता: सर, अभी हम लेक्चर के लिए तैयारी भी कर रहे होते हैं, तो उससे हम काफ़ी डर गए थे कि कैसा होगा, किस तरह से होगा। जो विचार काफ़ी समय से परेशान कर रहे थे, वो उस समय पर स्पष्ट नहीं हुए। तब उस समय पर यह चीज़ लगी कि थोड़ा बहुत भय था कि मेरा वो सेशन खराब न हो जाए। उस चक्कर में विचार से निकलने की कोशिश कर रहा था। तब यह लगा कि डर के आने की वजह से वो विचार चले गए, तो यह डर उस तरह बहुत फ़ायदेमंद हुआ।
वक्ता: डर क्या है? मिट्टी है? पत्थर है? सब्ज़ी है? इंसान है? चीज़ है? पकवान है? क्या है? डर क्या है?
श्रोता: एक विचार है।
वक्ता: ठीक है। डर एक मानसिक स्थिति है, ठीक है ना? डर एक मन है। यही है ना? और अगर मन वैसा हो ही तो? यदि मन वैसा हो ही जिसमें डर पलता हो, तो?
श्रोता: सर, तब डर ही का प्रयोग करना पड़ता है।