जो नहीं समझे वो चूके,जो समझे वो और भी चूके

प्रश्नकर्ता: सर, सब कुछ अगर छवि ही होता है, तो जो समझ में आता है, जैसे आपकी बात सुनना, वो भी समय की प्रक्रिया है। क्या ऐसा होता है, एक छवि या कुछ छवि बाकि सारी छवियों को मिटा सकती हैं?

आचार्य प्रशांत: देखिये, इस बात को स्वीकार करना आसान होगा कि संसार में ही कुछ छवियाँ होती हैं जो कि दूसरों से बेहतर होती हैं, जो दूसरों की काठ होती हैं। कुछ छवियाँ ऐसी होती हैं जो कि आपको छवियों से मुक्त कर सकती हैं। पर अगर मैं इस बात को स्वीकार करूँगा, तो बात ईमानदारी की नहीं होगी। आप यदि यहाँ बैठे हैं और आपको कुछ समझ में आ रहा है, तो वो इसलिए नहीं आ रहा है कि मैं आपसे कुछ कह रहा हूँ, आप कुछ सुन रहे हैं। जिसे आप ‘समझ’ कहते हैं, वो मन के पार की बात है। जिसे आप समझ कहते हैं, वो आपको समझ ‘न’ आने वाली बात है।

आप यहाँ बैठते हैं, आप यहाँ शान्त हो जाते हैं। आपको उसके लिए कोई न कोई विवेचना ढूँढ़नी है, क्योंकि आपको हर बात अपनी समझ के दायरे में रखनी है। तो आपके लिए आवश्यक हो जाता है कि आप इस बात को तर्क में व्यक्त कर दें कि यहाँ क्या हो रहा है, तो आप एक कहानी गढ़ते हैं। आपकी कहानी है - यहाँ आप बैठे हैं, यहाँ मैं बैठा हूँ। मैं कुछ बातें कह रहा हूँ, आप उन बातों को सुन रहे हैं। वो बातें आपको ठीक लग रही हैं और ठीक लगने के कारण आपको शान्ति मिल रही है।

मैं जो कह रहा हूँ, ऐसी कोई घटना नहीं घट रही है। न आप यहाँ बैठे हैं, न मैं यहाँ बैठा हूँ, और जो शान्ति है, वो मेरे कुछ भी करने से नहीं आ रही है, न आपके सुनने से आ रही है। यहाँ क्या हो रहा है वो आँखों से देखने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org