जो डरा हुआ है, वो प्रेम या मदद क्या करेगा

मुझे ये चीज़ बड़ी अजीब लगती है कि जब एक डरा हुआ मन प्रेम का प्रदर्शन करना चाहता है, या फ़िक्र का, या करुणा का और फिर कहता है कि देखो मेरी मज़बूरी है कि मैं चाहते हुए भी किसी की मदद नहीं कर सकता।

अरे भाई! अभी तुम मदद के काबिल ही नहीं हो, तुम्हारे लिए तो अभी तुम्हारे स्वार्थ ही सर्वोपरी हैं। तुम कैसे किसी की मदद कर लोगे?

किसी ऐसे व्यक्ति का आतिथ्य, प्रेम, या करुणा स्वीकार मत करना जो अभी अपनी ही चिंता में संलग्न हो, जिसको अभी अपनी ही बहुत परवाह है, वह तुम्हें सहारा नहीं दे पाएगा। तुम किसी को सहारा कैसे दे पाओगे जब तुम अपनी ही परवाह से मुक्त नहीं हुए?

इतना ही होगा कि तुमने उसे सहारे का झूठा आश्वासन दे दिया और अंततः तुम उसका विश्वास तोड़ दोगे।

उसी से मदद लेना जो अब मदद मांगता न हो औरे तुम भी तभी मदद देना जब तुम खुद मदद लेने के पार जा चुके हो। भिखारियों से भिख मत लेने लगना।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org