जो डरा हुआ है, वो प्रेम या मदद क्या करेगा
मुझे ये चीज़ बड़ी अजीब लगती है कि जब एक डरा हुआ मन प्रेम का प्रदर्शन करना चाहता है, या फ़िक्र का, या करुणा का और फिर कहता है कि देखो मेरी मज़बूरी है कि मैं चाहते हुए भी किसी की मदद नहीं कर सकता।
अरे भाई! अभी तुम मदद के काबिल ही नहीं हो, तुम्हारे लिए तो अभी तुम्हारे स्वार्थ ही सर्वोपरी हैं। तुम कैसे किसी की मदद कर लोगे?