जो जितना निर्भर दूसरों पर, वो उतना चिंतित अपनी छवि को लेकर
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, किसी बात को कहने में डर रहता है कि दूसरे क्या सोचेंगे।
आचार्य प्रशांत: ठीक है, तो दूसरे जो कुछ भी सोच रहे हैं, वो तो उनकी खोपड़ी में हो रहा है। दूसरों की सोच का जो भी असर हो रहा है वो तो उन्हीं की खोपड़ी पर होगा न? तुम क्यों डर रहे हो?
प्रश्नकर्ता: मैं ये सोचता हूँ कि वो ग़लत न सोचें।