जो जानता हूँ उस पर अमल क्यों नहीं कर पाता

प्रश्नकर्ता: आपसे और जगह-जगह से ऐसी बातें सुनता हूँ पर जब अपनी ज़िन्दगी में उतारने की कोशिश करता हूँ तो बहुत सारी ऐसी चीज़ें आती हैं जो रोकती हैं, इसकी वजह क्या है?

आचार्य प्रशांत: देखो, हर आदमी के भीतर दो आदमी होते हैं, एक असली आदमी, और एक नकली आदमी। और ध्यान न दो तो पता नहीं चलता कि कौन-कौन है? ये दोनों एक ही जैसे दिखते हैं, इनका एक ही नाम होता है। इनमें अंतर इतना ही होता है जितना कि एक आदमी और उसकी तस्वीर में, मूर्ती में। तो हम सब लोग दो हैं, और कुछ कह नहीं सकते कि उसमें से असली कौन है, बस ये पक्का है कि दो हैं। असली वाले को भी होने का हक़ है, नकली वाले को भी होने का हक़ है। हक़ नहीं होता तो वो होता नहीं। उसको नकली कहने का मतलब ये नहीं कि उसको गाली दी जा रही है। नकली सिर्फ़ इस अर्थ में कहा जा रहा है कि उसके पास अपना कुछ नहीं होता। वो जो भी पाता है, कहीं और से पाता है।

अब जब किसी को ज्ञान देना हो तो क्या करना है, मुंह ही तो चलाना है, मुंह तो कठपुतली भी चला लेती है, मुह तो रेडियो, टीवी भी चला लेते हैं। तो नकली वाले का काम वहाँ तक चल जाता हैं, जहाँ मुह चलाना हो। जहाँ कुछ असली करने की बात आती है, जहाँ जिंदगी सामने आती है, तब नकली वाला पीछे हट जाता है। अब नकली वाले का काम है पीछे हटना, वो हटेगा, जब नकली वाला अपने ही होने से बहुत परेशान हो जाता है, तो असली वाले के लिए जगह बन जाती है। जब तुम अपने ही दोगलेपन से परेशान हो जाते हो, तो तुम कहते हो यार ये कायरता बहुत हुई, और तब तुम हिम्मत कर के असली बदलाव लाते हो। नहीं तो नकलीपना चलता रहता है, जब तक आदमी उसे झेल…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org