जो कठिनतम है उसे साध लो, बाकी अपने आप साध जाएगा
प्रश्नकर्ता: कृष्ण अध्याय नौ में बताते हैं कि वे सब भूतों में समभाव से व्यक्त हैं, वहीं अध्याय दस में बताते हैं कि जो कुछ भी विभूतियुक्त, कांतियुक्त और शक्ति युक्त है, वो कृष्ण की अभिव्यक्ति है। अध्याय नौ में कृष्ण कहते हैं कि ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद मैं ही हूँ और अध्याय दस में कहते हैं कि मैं वेदों में सामवेद हूँ। अध्याय दस में श्रीकृष्ण यह भी कहते हैं कि छल करने वालों में मैं जुआ हूँ। अगर कृष्ण सर्वत्र हैं तो इतना विस्तार से बताने का क्या तात्पर्य हो सकता है? आचार्य जी, क्या ऐसा भी कुछ है जो कृष्ण की अभिव्यक्ति नहीं है? समझाने की कृपा करें।