जो उत्कृष्ट नहीं वो कृष्ण से बहुत दूर

कृष्ण कह रहे हैं कि या तो मन को अचल करके सीधे ही मुझ तक पहुंच जाओ और वास्तव में अचल मन का नाम ही कृष्णत्व है। यदि संसार में उलझे हो तो उत्कृष्टता ही कृष्ण तक पहुंचने का मार्ग है। प्रकृति में मूल रूप से विविधता तो होती है पर उत्कृष्टता नहीं होती। इसलिए उत्कृष्टता प्रकृति का अतिक्रमण है।

प्रकृति में साधारण हाथी होते हैं पर ऐरावत कहां से आ गया, यही असाधारणता कृष्णत्व है। पर्वतों में गोवर्धन अतिबलशाली हैं इसलिए वो पूजनीय हो गया। कृष्ण यही कह रहे हैं कि जहां कुछ असाधारण देखो, वहीं सर झुका दो। वही प्रमाण है कृष्ण के होने का।

यदि जीवन के किसी भी क्षेत्र में आप उत्कृष्ट नहीं हैं तो आप कृष्ण से बहुत दूर हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि जब हमें मौका मिलता है उत्कृष्ट होने का तो हम पीछे हट जाते हैं। हममें से अधिकांश लोगों के मन में ऊंचाई के प्रति सम्मान भी नहीं है।

सबसे पहले किसी एक क्षेत्र में श्रेष्ठ हो तब फिर दूसरे क्षेत्र की सोचना। यदि एक क्षेत्र में भी अव्वल हो गये तो तुमने आध्यात्मिक होने का परिचय दे दिया।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org