जो अपने स्वाभाविक चेहरे में ही रहते हैं, उन्हें धन्यता यह मिलती है कि अब वो हज़ार अन्य चेहरे पहन सकते हैं।

वो सारे चेहरे अब जीवन हैं उनके लिए — अब गति है, अब क्रीडा है, शोभा है, अभिव्यक्ति है।

और जिसके पास अपना चेहरा नहीं, वो भी हज़ार अन्य चेहरे पहनता है, उसके लिए वो सारे चेहरे — विवशता हैं, मजबूरी हैं, एक कारुणिक क्रंदन है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org