जो अनुभव में आए सो झूठ
स्थूलशरीराभिमानि जीवनामकं ब्रह्मप्रतिबिम्बं भवति।
स एव जीव: प्रकुत्या स्वस्मात् ईश्वर भिन्नत्वेन जानाति।।
स्थूलशरीर अभिमानी जीव नामक ब्रह्म का प्रतिबिंब होता है। वह ही जीव स्वभाव से ही ईश्वर को अपने से भिन्न जानता है।
— तत्वबोध, श्लोक २७
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, नमन। मैं स्वयं विभिन्न प्रकार से स्वभाव में स्थित रहने का प्रयास करता हूँ, मगर हमेशा…