जैसे तुम वैसे तुम्हारे रिश्ते

रिश्ता तुम्हारा कैसा है ये तो सीधे-सीधे इसी बात पर निर्भर करता है कि तुम कैसे हो। जैसे तुम होगे तुम्हारे सारे रिश्तों की गुणवत्ता वैसी ही होगी। अगर मैं हिंसक हूँ तो मेरा चिड़िया से रिश्ता कैसा होगा? हिंसा का। और अगर मैं हिंसक हूँ तो मेरा मेरे बच्चे के साथ कैसा रिश्ता होगा? हिंसा का।

आप सुधर जाइए आपका रिश्ता ठीक हो जाएगा, अगर आप सुधर जाएंगे आपका सिर्फ़ एक ही रिश्ता ठीक नहीं होगा, सारे रिश्ते एक साथ ठीक हो जाएंगे। इसी को कहा गया है एक साधे सब साधे। एक माने क्या? स्वयं को। उसी स्वयं को आत्मा भी कहते हैं, परमात्मा भी कहते हैं, सत्य भी कहते हैं।

तुम सत्य के प्रति समर्पित हो गए, तुम्हारा तुमहारे घर के चोकीदार से रिश्ता बेहतर हो जाएगा। प्रेमी से भी रिश्ता सुंदर हो जाएगा। पड़ोसी से भी रिश्ता प्यारा हो जाएगा। पूरे जगत के साथ तुम्हारा संबंध सम्यक हो जाएगा, प्रेम का हो जाएगा, अगर तुमहारा जो प्रथम संबंध है, वो तुमने ठीक कर लिया तो। जो तुम्हारा प्रथम संबंध है वो अपने साथ है, उसी को कहते हैं परमात्मा के साथ संबंध, उसी को कहते हैं सत्य के साथ संबंध।

तुम यह देखना ही छोड़ दो कि मेरा कोई एक खास विशेष रिश्ता कैसा है। तुम्हें पूरा देखना होगा कि मेरा पूरा जीवन कैसा है। जैसा तुम्हारा जीवन होगा वैसे ही तुम्हारे सब रिश्ते होंगे। कोई एक रिश्ता ठीक करना है तो पूरी ज़िन्दगी ठीक कर लो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org