जीव-हत्या और अपराध भाव
जिसको तुम प्रकृति कह रहे हो वास्तव में प्रकृति से थोड़ा-सा आगे कुछ है, वो सामाजिक संस्कार भी हैं। तो प्रकृति पूरी तरह से दैहिक होती है, उसको लेकर के पैदा होते हो गर्भ से और उसके बाद सामाजिक संस्कारों की भी एक तह जमती है। प्रकृति को तुम कह सकते हो ‘बायोलॉजिकल कंडीशनिंग’, सामाजिक संस्कारों को कह सकते हो ‘सोशल कंडीशनिंग’, लेकिन चाहे जैविक हो, चाहे सामाजिक हो, दोनों ही आत्मिक तो नहीं हैं।