जीवहत्या और हिंसा
प्रश्नकर्ता (प्र): सर, ऐसे तो जब हम साँस लेते हैं उसमें ‘बैक्टीरिया’ के जीव अंदर जाते हैं और वो मरते हैं। ऐसे ही कई अलग तरीको से पेड़-पौधे भी मरते हैं।
आचार्य प्रशांत (आचार्य): तुम्हारी आंतों में हज़ार तरीके के बैक्टीरिया हैं जो प्रतिपल मर रहे हैं, घट रहे हैं, बढ़ रहे हैं। वहाँ तुम्हारे पास कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती है, उनको बचाने की। अब वो घटना तुम्हारी चेतना के बाहर की है। उसमें तुम्हारी इच्छा का कोई महत्व ही नहीं है। तुम साँस ले…