जीवहत्या और हिंसा

प्रश्नकर्ता (प्र): सर, ऐसे तो जब हम साँस लेते हैं उसमें ‘बैक्टीरिया’ के जीव अंदर जाते हैं और वो मरते हैं। ऐसे ही कई अलग तरीको से पेड़-पौधे भी मरते हैं।

आचार्य प्रशांत (आचार्य): तुम्हारी आंतों में हज़ार तरीके के बैक्टीरिया हैं जो प्रतिपल मर रहे हैं, घट रहे हैं, बढ़ रहे हैं। वहाँ तुम्हारे पास कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती है, उनको बचाने की। अब वो घटना तुम्हारी चेतना के बाहर की है। उसमें तुम्हारी इच्छा का कोई महत्व ही नहीं है। तुम साँस ले रहे हो, साँस लेने में अंततः छोटे-मोटे जीव तुम्हरे अंदर पहुँचें, तो उनकी हत्या हो सकती है। वो तुम्हारे ‘सिस्टम’ का ही हिस्सा हैं। वो तुम हो। तो उसमें हत्या जैसा कुछ नहीं है। अगर कोई इंसान पौधे को मार कर खाता है, तो वो पाप है। इसीलिए जो चैतन्य लोग हैं उन्होंने पौधों को भी मारने से मना किया है। और प्रकृति ने इंसान के लिए ऐसी व्यवस्था बिल्कुल कर रखी है कि वो पौधों को मारे बिना भी खूब पौष्टिक भोजन खा सकता है। उदाहरण देता हूँ।

पेड़ से फल गिरता है, वो फल अपनेआप गिरा है। जब तुम उस फल को खा रहे हो तो उससे उस फल को फ़ायदा ही हो रहा है। अभी तुमने फल खाया तो तुम्हारे माध्यम से फल के बीज अब दूर-दूर तक पहुँच गये। तो पेड़ को फ़ायदा हुआ। प्रकृति ने खुद ऐसी व्यवस्था बनाई है कि तुममें और पेड़-पौधों में समायोजन बना रहे।

ये ज़रुरी नहीं है कि तुम पेड़ों को, पौधों को काट ही डालो। उदाहरण के लिए, आप पेड़ की पत्तियाँ अगर खाते हैं और सीमित मात्रा में पेड़ से पत्तियाँ तोड़ लेते हैं, तो पेड़ पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्यों? क्योंकि पत्तियाँ उँगलियों की तरह नहीं हैं। आप पत्तियाँ तोड़ेंगे तो उसकी जगह नई पत्तियाँ आ जायेंगी। पर अगर आप एक जानवर की उँगलियाँ काट कर खा गये, तो वो कभी वापस नही आयेंगी। समझ रहे हो?

तो प्रकृति ने खुद आपको पेड़ो की पत्तियाँ दी हैं, आप खाईये। हाँ, ऐसा मत करिये कि आपने पेड़ का तना ही काट दिया। आप फल खाईये, आप शाख खाईये, आप पत्तियाँ खाईये। और वो सब उचित मात्रा में पेड़ पर हैं। और कोई कहे कि आपको उससे पोषण नहीं मिलेगा, तो वो भी कुतर्क है। आज बड़े-बड़े एथलीट हैं, धावक हैं जो माँस तो छोड़ो दूध भी नहीं पीते। वो दुनिया के ऊँचे से ऊँचे, ताकतवर से ताकतवर, तेज से तेज एथलीट हैं।

तो अगर कोई ये तर्क दे कि माँस खाना, जानवरों को सताना, जानवरों को मारना, या जानवरों का दूध निकालना ज़रुरी है स्वास्थ्य के लिए, तो वो भी तथ्यपरक बात नहीं बोल रहा है। आप जानवरों को अलग छोड़ दीजिये, उनकी अपनी दुनिया है आपको हस्तक्षेप करने की ज़रूरत नहीं है। जैसे जानवर आकर आपकी दुनिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करते हैं, ठीक उसी तरह से आप भी उनकी ज़िंदगी में बाधा मत डालिये।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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