जीवन व्यर्थ मुद्दों से कैसे भर जाता है?

प्रश्नकर्ता (प्र): आचार्य जी नमस्कार! पिछले दो दिन से उपनिषद समागम के दौरान जो मन में प्रश्न उठ रहे थे वो एकदम सामान्य प्रश्न थे जो आम ज़िन्दगी से संबंधित होते हैं। एक तरह से वे बनावटी प्रश्न थे। उन प्रश्नों पर गौर से ध्यान देने भर से वे भंग हो जा रहे थे। तो मेरा प्रश्न ये है कि अपने-आप में वो परिपक्वता किस तरह लाई जाए ताकि अध्यात्म से संबंधित असली प्रश्न उठ सकें?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org