जीवन में सीखें कैसे?
पढ़िए, स्वाध्याय करिए और दैनिक जीवन के प्रति सतर्क रहिए। दो ही तरीके से आदमी की मदद हो सकती है — या तो अपनी मदद खुद कर ले या फिर बाहर जहाँ-जहाँ से मदद मिल रही हो उसका लाभ उठाए।
पहली कोशिश तो यही है कि अपनी मदद जितनी ज़्यादा से ज़्यादा कर सकते हो, करो। जब अपनी मदद की बिल्कुल अधिकता पर पहुँच जाओगे, सीमा पर पहुँच जाओगे, तब फिर बाहर से भी मदद आने लगती है और आप इस योग्य भी हो जाते हैं कि बाहर से जो मदद आ रही हो उसको पहचान पाएं, उसक लाभ उठा पाएं।
सबसे पहले तो जीवन से सीखने की कोशिश किया करिए। और फिर जैसे-जैसे जीवन से सीखते जाते हैं, वैसे-वैसे जीवन जिन सहायक स्थितियों को आपके पास भेजता है आप उनसे भी लाभ उठाते जाते हैं। जो आदमी कहेगा कि मैं जीवन से सीखता हूँ वो फिर किसी गुरु से भी सीख लेगा।
और जो आदमी कह रहा है — मैं किसी चीज़ से नहीं सीखूँगा, मैं तो सिर्फ गुरु से सीखूँगा। वो यही तो कह रहा है कि मैं ज़िन्दगी से नहीं सीखूँगा। जो ज़िन्दगी के सब हिस्सों से सीखता है वही फिर किसी गुरु से भी सीख पाता है। तो सीखने का भाव लगातार रहे। लगातार आग्रही रहा करिए कि जो कुछ भी हो रहा है ये हो क्या रहा है? जहाँ कहीं भी जो हो रहा हो उसके साथ थोड़ा समय लगाइए, थोड़ा उससे उलझिए। इस अन्धविश्वास में मत रहिये कि हम जानते ही हैं।
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