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जीवन में झटका लगे तो

जीवन के झटकों से बचना है ही नहीं। उनका धन्यवाद देना है कि उन्होंने आकर के बता दिया कि अभी कितना काम बचा हुआ है। काम इतनी जल्दी पूरा होता नहीं। वो तो जीवन भर की आहुति मांगता है।

ये सब स्थितियाँ हमारे लिए आवश्यक हैं। ये ना हो तो हम अपने बारे में ग़लतफ़हमी में ही रह जाएंगे। हम बहुत जल्दी अपने आपको ये प्रमाण पत्र दे देंगे कि हमारा अहंकार तो निपट गया। खोद-खोद करके देखा करिए कि भीतर अभी कहाँ पर मल और कलुष शेष है।

इन सब स्थितियों के शुक्रगुजार रहिये जो आपको आपका क्रोधित रूप दिखा दे, जो आपको आपका भयभीत या शक्की रूप दिखा दे। स्थितियाँ उस धुएँ की तरह होती हैं जो चूहों को उनके बिल से निकाल देता है। अगर साधक सच्चा है तो उसका कर्तव्य है कि वो धुँआ खुद पैदा करे। तभी तो पता चलेगा अपने अन्दर कितना दम है?

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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