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जीवन में अनुशासन कैसे आए?

जीवन में अनुशासन कैसे आए?

प्रश्नकर्ता : प्रणाम आचार्य जी, मैं अनुशासित नहीं रह पाता और मेरे मन में कामुक विचार छाए रहते हैं। अभी आपने जो बताया कि उलझना ही ठीक नहीं, तो मुझे ये समझ नहीं आता कि अगर मैं इन कामुक विचारों से न उलझूँ, तो मुझे फिर मुक्ति कैसे मिलेगी?

आचार्य प्रशांत: अनुशासन बहुत सहज, बहुत सरल बात है। अनुशासन का मतलब होता है कि मन आत्मा के इतने निकट है, कि आत्मा उसे सहज शासित कर रही है। मन आत्मा के इतने निकट है, इतने प्रेम में है आत्मा से, कि वो आत्मा के शासन में आ गया है। ये अनुशासन है।

आत्म-अनुशासन ही अनुशासन है। और ‘आत्म’ से मेरा मतलब ये नहीं कि अहंकार स्वयं को अनुशासित करने की कोशिश करे; नहीं, वो बात नहीं है। आत्मा का शासन ही आत्म-अनुशासन है। अपनेआप को आत्मा से शासित होने दो, वही तुम्हारी मलिक रहे, सत्य ही तुम्हारा स्वामी रहे, ये अनुशासन चाहिए। तो अनुशासन अपनेआप हो जाता है, जब तुम सच के पास होते हो। क्योंकि वो बात बड़ी सुंदर है, वो वस्तु ऐसी है कि उसमें बड़ा आकर्षण है, तुम उसकी उपेक्षा, अवहेलना नहीं कर सकते। उसे ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करना पड़ता, उसकी बात ऐसी है कि तुम्हें वो बात माननी ही पड़ती है, तुम विवश हो जाते हो। समझ में आ रही है बात? उसके आगे तुम्हारी चलती नहीं है, तुम सहज ही अनुशासित हो जाते हो।

अब अगर तुम पाओ कि जीवन में अनुशासन नहीं है, तो मतलब साफ़ समझ लो कि तुम जिस विषय के पास हो, उसमें इतनी जान ही नहीं है कि वह तुम्हें अनुशासित कर पाए। स्वयं को अनुशासित करने की चेष्टा मत करो, उपयुक्त विषय ढूँढो, या जिस विषय के पास हो उसकी सच्चाई पहचानने की कोशिश करो।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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