जीवन- धर्मों का धर्म
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धर्म कभी अलग-अलग हो ही नहीं सकते। धर्मों के नाम अलग-अलग हो सकते हैं, पर धर्म कभी अलग नहीं हो सकते।
होता क्या है कि धर्म सिर्फ रौशनी की तरह है, लेकिन वो रौशनी कभी इस सीएफएल से निकलती है, कभी दिये से निकलती है और दीयों का प्रकार भी १००० तरीकों का होता है, कभी सूरज से निकलती है, कभी कहीं और से। जब तक रौशनी रहती है तब तक तो ये स्पष्ट होता है कि ये रहा दिया और ये रही उसकी ज्योति और इससे आ रही थी रौशनी और सबको स्पष्ट होता है कि प्राथमिक रौशनी है लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है जिस दिन रौशनी बुझ जाती है, तब बचता है सिर्फ वो दिया।
और बाद के लोग सब ये ही समझने लगते हैं कि ये दिया ही प्राथमिक है, कि जैसे इस दिये में ही कोई बड़ी बात थी। अब एक गाँव के लोग एक प्रकार के दिये से रौशनी लेते हैं और दूसरे गाँव के लोग दूसरे तरीके के दिये से रौशनी लेते हैं।
रौशनी एक है पर उनमें लड़ाई इस बात पर होती है कि कौन सा दिया श्रेष्ठ है। एक गाँव का जो दिया है वो गोल है और दूसरे गाँव का जो दिया है वो चोकोर है, रौशनी एक है और रौशनी जब तक है तब तक दिये पर क्या ध्यान देना लेकिन रौशनी बुझ जाती है।
बुद्ध आते हैं चले जाते हैं, मोहम्मद आते हैं चले जाते हैं, उनके जाने के बाद बचते हैं सिर्फ ये खाली कटोरे। इन खाली कटोरों को हमने धर्म का नाम दे दिया है और यही वजह है कि धर्म के नाम पर इतनी लड़ाइयाँ होती हैं। हम रौशनी को भूल गये हैं और कटोरे को याद रखे हुए हैं। रौशनी की हमें कोई खबर नहीं है लेकिन कटोरे से हमने बड़ी दोस्ती कर ली है और उसी कटोरे को हम धर्म समझते हैं। उस कटोरे में रखा क्या है?
असली चीज़ है रौशनी और वो रौशनी तुम्हारी अपनी होती है, आन्तरिक।
याद रखना जो भी कोई उस रौशनी को पा जाएगा वो कहेगा कटोरे में क्या रखा है। ऐसा हो या वैसा हो, छोटा हो या बड़ा हो। किसी भी स्रोत से आ रहा हो प्रकाश, प्रकाश तो प्रकाश है। जो प्रकाश को पा जाएगा वो बहुत ध्यान इस बात पर नहीं देगा कि किस किताब से मिल रहा है, किस संत से मिल रहा है, नाम क्या जुड़ा हुआ है उसके साथ। वो कहेगा कि रौशनी-रौशनी है, जहाँ से भी मिले स्वागत है, प्रणाम करता हूँ उसको। लेकिन जिनको रौशनी उपलब्ध नहीं होती, जिनके मन में पूरा अँधेरा होता है वो कटोरों को लेकर के, दीयों को लेकर के खूब लड़ाइयाँ करते हैं।
अब तुम बेवकूफी देखो कि चारों तरफ अँधेरा छाया हुआ है, रौशनी कहीं नहीं है और इस गाँव के लोग उस गाँव के लोगों से लड़ रहे हैं हाथों में कटोरे लेकर के। एक कटोरे का नाम है इस्लाम, एक कटोरे का नाम है हिन्दुत्व, एक कटोरे का नाम है इसाईयत। दुनिया में सैकड़ों धर्म हैं, तुम्हे पता नहीं होगा, तुम सोचते होगे ५-१० ही धर्म हैं। दुनिया में सैकड़ों धर्म हैं पर धर्म एक ही होता है, सैकड़ों सिर्फ कटोरे होते हैं। जिसको रौशनी देखना आता है, जिसकी आंखें खुली है, कौन सी आंखें? मन की आंखें।
जिसे रौशनी की समझ है, जिसकी आंखें खुली है, उसे गीता में भी वही रौशनी दिखाई देगी जो बाइबिल में, जो हदीस में। जिसकी आंखें नहीं खुली हैं वो लड़ेगा क्योंकि रौशनी तो उसे दिख ही नहीं रही और रौशनी आन्तरिक होती है।
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