जीवन गँवाने के डर से अक्सर हम जीते ही नहीं
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ।।
~ संत कबीर
प्रश्नकर्ता: इस दोहे को जब मैं अपने जीवन के सन्दर्भ में देखती हूँ तो पाती हूँ कि मेरे सारे प्रयत्न, जवाबों को ढूँढने की राह में कम ही पड़ते हैंI अपने प्रयासों को और बेहतर कैसे बनाऊँ?