जीवन कैसा है, सिर्फ़ ये बताओ!
प्रश्नकर्ता: एक चीज़ होती है मेंटल एजिलिटी (मानसिक चपलता), जैसे कि मैं कहीं बाइक से जा रहा हूँ और अचानक कोई मोड़ आ गया या एक कुत्ता बीच सड़क पर आ गया, तो मुझे एकदम से ब्रेक लगाने की आवश्यकता पड़ी। तो ये जो स्किल (कौशल) होती है एकदम से ब्रेक लगाने की, ये क्या है?
आचार्य प्रशांत: स्किल (कौशल) नहीं है, स्किल बिलकुल नहीं है। इसमें निर्णय नहीं कर पाओगे। बोला न तुमने, ‘एकदम से’। ‘एकदम से’ माने उसी साँस में, एकदम, उसी साँस में। ये स्किल नहीं होती है। स्किल तो सीखी जाती है, स्किल में तो निर्णय करना पड़ता है। ये वो नहीं है, ये कुछ और है। ये तो तुम जैसी ज़िन्दगी जी रहे होते हो वैसी तुम्हारी बाइक चलती है। ये तो ब्रेक एकदम से लगता है, एकदम से, उसी साँस में, बिना विचार किये।
तुम सही हो तो ही ब्रेक लगेगा नहीं तो वो मौक़ा बीत जाएगा। कुत्ता वहाँ पड़ा रह जाएगा, तुम सोचते ही रह जाओगे कि अब ब्रेक लगाऊँ और जब दो सेकंड बीत जाएँगे तब तुम कहोगे, ‘अरे! मैं तो पीछे रह गया अब ब्रेक लगाने से फ़ायदा क्या? अब तो छूट गया, अब यू टर्न कौन लेगा! छोड़ो न, कोई और आकर उसकी परवाह कर लेगा। अब आगे बढ़ो।’
ये जो भी काम एकदम से होते हैं न, चाहे मुक्ति हो, चाहे प्रेम हो, चाहे बाइक पर ब्रेक लगाना, ये तो सही जीवन से ही आते हैं। अभी भी मेरी बात अगर तुम्हें समझ में आ रही होगी तो एकदम से ही आएगी, अनायास। और वो तो सही जीवन का परिणाम होता है, वो कोई स्किल नहीं होती, उसमें कोई कौशल नहीं चाहिए। तुमने बड़ा हीन शब्द प्रयोग कर दिया, स्किल तो ऐसा लगता है जैसे कि अभ्यास से अर्जित कर लोगे। ये बात…