जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय में ही कामवासना क्यों प्रबल होती है?
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प्रश्नकर्ता: जो जीवन का सबसे कीमती समय होता है, जब हमें ज़िन्दगी बनानी होती है और ज़िन्दगी के बड़े-बड़े निर्णय करने होते हैं। ठीक उसी अवधि से गुजरते हुए, ठीक उसी दरमियान हमें कामवासना सबसे ज़्यादा क्यों सताती है?
एक बार अधेड़ हो गये, बूढ़े हो गये फिर कौन-सा बड़ा निर्णय लेना है? फिर तो वैसे भी कौन-सा नये जीवन का निर्माण करना है? और जिन दिनों मौका होता है, अवसर होता है और खतरा होता है नये जीवन के निर्माण का। ठीक उन दिनों सारा समय, ऊर्जा, ध्यान कामवासना खींच कर ले जाती है, ऐसा क्यों है?
आदमी अगर अस्सी साल जीता है तो कामवासना सबसे ज्यादा पन्द्रह से पैंतीस की ही उम्र में प्रभावित करती है और पन्द्रह से पैंतीस की ही जो उम्र होती है उसके जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उम्र भी होती है
आचार्य प्रशांत: इसी से समझ जाओ कि प्रकृति के इरादे क्या हैं? कामवासना का संबंध शरीर से है, शरीर प्राकृतिक है। प्रकृति नहीं चाहती कि तुम अपनी मुक्ति का आयोजन करो। कभी मैं कह देता हूँ- प्रकृति तुम्हारी मुक्ति के प्रति उदासीन है, इनडिफरेंट है और कभी मैं कह देता हूँ कि प्रकृति तुम्हारी मुक्ति की विरोधी है। इसको जैसे देखना-सुनना चाहो समझ लो लेकिन एक बात तो तय है कि प्रकृति चाहती तो बिल्कुल नहीं है कि तुम अपनी मुक्ति का प्रयास करो।
तो जब तुम्हारे पास बुद्धि की तीव्रता सबसे ज्यादा होती है और बाहुबल भी सबसे ज्यादा होता है ठीक उस समय प्रकृति अपना दांव खेलती है। जवानी में ऐसा नहीं है कि तुम्हारे पास सिर्फ शारीरिक उर्जा हीं सबसे ज्यादा होती है , बुद्धि भी। तुमने शतरंज के खिलाड़ी देखे हैं? जैसे टेनिस के खिलाड़ी, और, और खेलों के खिलाड़ी पैंतीस-अड़तीस के बाद सेवानिवृत्त, रिटायर हो जाते हैं। हो जाते हैं न? वैसे ही शतरंज के खिलाड़ी भी तुमको सत्तर की उम्र में खेलते नहीं मिलेंगे। शतरंज में भी वो रिटायर हो जाते हैं। तुम कहोगे शतरंज में क्यों रिटायर होते हैं? शरीर बूढ़ा हुआ है, मन तो बूढ़ा नहीं हुआ है। नहीं साहब! एक उम्र के बाद, बुद्धि भी घटने लग जाती है। आपकी बुद्धि में जो तीव्रता होती है, जो चपलता होती है, जो उत्कटता होती है, जो शार्पनेस होती है, वो एक उम्र के बाद कम होने लग जाती है। जैसे पूरे शरीर की कोशिकाएँ- पुरानी, कमजोर होने लगती हैं वैसे ही तुम्हारे मस्तिष्क की ब्रेन सेल्स भी पुरानी और कमजोर होने लगती हैं। तो बुद्धि भी तुम्हारी धीरे-धीरे… हाँ अनुभवों में तुम आगे निकल जाते हो। पर जो तुम्हारी मेंटल कैपेसिटीज होती हैं, रेफ़्लेक्सेस और कई और चीजें उनमें तुम गिर जाते हो।