जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय में ही कामवासना क्यों प्रबल होती है?
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प्रकृति नहीं चाहती कि तुम अपनी मुक्ति का आयोजन करो, कभी मैं कह देता हूँ प्रकृति तुम्हारी मुक्ति के प्रति उदासीन है और कभी मैं कह देता हूँ कि प्रकृति तुम्हारी मुक्ति की विरोधी है। जब तुम्हारे पास बुद्धि की तीव्रता सबसे ज़्यादा होती है और बाहुबल भी सबसे ज़्यादा होती है ठीक उसी समय प्रकृति अपना दांव-पेंच खेलती है। जवानी के बाद तुम शारीरिक, मानसिक दोनों तरीके से गिर जाते हो, जवानी में शिखर है तुम्हें, इस समय अगर तुमने अपना सदुपयोग कर लिया तो तुम आजाद उड़ जाओगे। इसलिए तुम पर जबर्दस्त वार प्रकृति द्वारा कामवासना का किया जाता है ठीक उस समय जब तुम्हारे सामने दूसरे महत्वपूर्ण कार्य मौजूद है।
प्रकृति नहीं चाहती है कि तुम बेहतर साथी चुनों, वो चाहती है कि तुम पहला साथी चुनों, जो पहला मिल जाए उसी के साथ लग जाओ, प्रकृति तुम्हें इंतज़ार नहीं करने देगी। तुम में कामवासना प्रज्वलित कर देगी इंतजार तुम से किया नहीं जाएगा।
जिन्हें जीवन में ऊपर उठना हो उन्हें जल्दी रिश्ता बनाना चाहिए या ठहर के, देर में?
तुम सोचते हो कामवासना तुम्हें सुख देती है, तुम्हें समझ में नहीं आता कि वो तुम्हें सुख देने नहीं, तुम्हें ज़िंदगी भर के लिए बंधक बनाने, बर्बाद करने आई है और ये मैं लड़के-लड़कियों दोनों से बोल रहा हूँ। मुझे न लड़के से समस्या है, न लड़की से कोई समस्या है, मुझे ज़िंदगी के बर्बाद जाने से समस्या है, इंसान हो तुम कोई जानवर थोड़ी न हो कि कैसी भी ज़िंदगी बिता लो चलेगा।
तुम समझते ही नहीं कि वो चक्कर तुम्हारी ज़िंदगी में आ कहाँ से रहे है, प्रकृति को समझना आसान नहीं है, वास्तव में पूरा आध्यात्मिक साहित्य आत्मा को नहीं समझाता, अनात्मा अर्थात प्रकृति को ही समझाता है, खुद को समझना यानी प्रकृति को समझना।
अध्यात्म इसलिए ज़रूरी है, नहीं तो गलत नौकरी चुनोगे, गलत साथी चुनोगे, सब तरह के गलत निर्णय लोगे, तुम्हें कुछ पता नहीं होगा कैसे जीना है, और बहुत तुम्हें मज़ा आ रहा होगा। प्रकृति चाहती है कि तुम इन्हीं झंझटों में पड़े रहो, चेतना चाहती है कि तुम आजादी की तरफ बढ़ो।
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