जीवन के भटकाव से बचने की शुरुआत कहाँ से करें?

भटके हुए आदमी की कामना ये नहीं रहती कि उसे कोई मार्ग दिखाने वाला पथ प्रदर्शक मिल जाए जो रास्ता जानता हो। भटके हुए की पहली इच्छा, पहली प्रवृत्ति ये होती है कि उसे और लोग मिल जाएं उसी के जैसे जो भटके हुए हों क्योंकि उसका स्वार्थ ही उन्हीं से निकलेगा।

ये बड़ी अजीब बात है, यही तो माया है कि जो भटका हुआ है उसे माँगना चाहिए कोई ऐसा जो राह जानता हो, लेकिन जो भटका हुआ है वो सबसे ज़्यादा दूरी उसी से बनाता है जो राह जानता है, और भटके हुए को सबसे ज़्यादा आनंद किसके पास आता है? और भटके हुए लोगों के साथ, वो उन्हीं के साथ अपना मस्त-मगन रहेगा।

तो फिर शुरुआत कहाँ से करें कि भटकाव से बचे?
देख लो क्या चाहते हो? किसे चाहते हो?

जिसको चाहते हो, उसी के कारण फँसे हुए हो। उन्हीं से बचना है जिनके प्रति तुममें आकर्षण हैं, और दूसरों की बात बाद में, सबसे ज़्यादा आकर्षण तो हमें अपने आप से है, सबसे ज़्यादा अपने आप से बचो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org