जीवन की परीक्षा ही बताती है कि कितने पानी में हो
17 min readNov 11, 2021
--
प्रश्नकर्ता: आज एक, कुछ कथाएँ मिली थीं पढ़ने को। उनमें से सबसे पहली कथा जब पढ़ी थी तो उसका शायद संक्षेप ये था अंत में कि तुम्हें जो भी कर रहे हो उसके लिए तुम्हें किसी भी चीज़ का मोह या उसके प्रति आसक्ति या ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए कार्य कर रहे हो तो। सफ़लता और विफ़लता, आपको उससे ना दुखी ना सुखी, इस तरह का आपसे सम्बन्ध नहीं होना चाहिए उस चीज़ से। पर आजतक शायद, मुझे लगता नहीं है, या फ़िर मुझे, या फ़िर मैंने उसको इतने तमीज़ से देखा नहीं होगा कि मैंने कोई कार्य बिना किसी इच्छा के या फिर उसके प्रति कुछ भी भाव जो मेरे अंदर जागृत होता है उसके बिना किया हो।