जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य क्या?

जो चीज़ सता रही हो, उससे छुटकारा पा लो, यही लक्ष्य है।

जब बहुत गहरा दुःख हो तो उस वक्त कहते हो कि ठीक अभी निजात दिलाओ दुःख से, आगे की बात मत करो। जीवन में देख लो कि क्या दुःख है। जो दुःख तुम्हें सताता हो, उससे मुक्ति ही जीवन का लक्ष्य है और कोई लक्ष्य नहीं है जीवन का। दुखों से मुक्त हो जाओ तो जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो गया। उसके बाद किसी और लक्ष्य की बात करने की ज़रूरत नहीं है, लक्ष्यहीन हो गए तुम।

जीवन का अंतिम लक्ष्य फिर क्या हो गया? लक्ष्यहीनता।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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